
वृंदावन में इन दिनों भक्ति और वैराग्य का संगम देखा जा रहा है। मथुरा की हनुमान टेकरी से पधारे संतों के एक समूह ने वृंदावन में कुंज आश्रम पर प्रेमानंद महाराज से भेंट की। प्रेमानंद महाराज के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए उनका सत्कार किया। प्रेमानंद महाराज ने भी अभिवादन किया। इस दौरान संतों ने अपनी जिज्ञासाओं से जुड़े प्रश्न पूछे, जिनका उन्होंने गहराई उत्तर दिया
महाराज ने अपने सत्संग में उपदेश देने के समय और उसकी शुद्धता पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए। उन्होंने दृढ़ता से कहा कि भगवत्-साक्षात्कार और निर्विषय हृदय (वासना रहित मन) के बिना किया गया कोई भी उपदेश साधक के लिए एक ‘दुर्भाग्य’ सिद्ध हो सकता है। संत ने उपदेश के लिए तीन अनिवार्य शर्तें बताईं: अनुभोग निर्विषय हृदय, और भगवत साक्षात्कार।
चेतावनी दी कि यदि उपदेशक ‘यश की चाह’ या ‘कामनाओं की पूर्ति’ के लिए भगवद-गुणों का गायन करता है, तो भक्ति का सीधा फल ‘भगवत प्रेम’ नहीं मिलता। उसे मान-सम्मान और धन मिलता है, जो साधक के लिए दुर्भाग्य है। प्रेमानन्द महाराज ने ने स्पष्ट किया, अगर उपदेश के पीछे कपट मिला हुआ है, तो भगवत प्रेम के स्थान पर हमें मान-सम्मान मिलता है, और यह साधक को अपनी आध्यात्मिक स्थिति से नीचे गिरा देता है।
