
बाराबंकी (उत्तर प्रदेश):
जब पूरा देश चांद पर झंडा फहरा चुका है, गांव-गांव में इंटरनेट की बात हो रही है, तब बाराबंकी जिले से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर बसे गढ़रियनपुरवा गांव के हालात आज भी गुलामी के दौर जैसे हैं। यहां 77 साल की आजादी भी बदलाव नहीं ला सकी। न बिजली, न पीने का पानी, न सड़क, न स्कूल, सिर्फ उपेक्षा और अंधेरा।
आज भी बिजली की एक किरण का इंतजार
गांव के बुजुर्ग कहते हैं, “हमने अपने बचपन में भी अंधेरा देखा और अब बुढ़ापे में भी वही अंधेरा हमारी आंखों में है।”
2017 में लगे बिजली के खंभे आज तक सिर्फ खंभे ही हैं। न तार लगे, न कनेक्शन हुआ। गांव की शिक्षिका रूबी बताती हैं कि “बच्चे दीये की मद्धम रोशनी में पढ़ते हैं, पंखा नहीं है, गर्मी में दम घुटता है। रोशनी और हवा के बिना पढ़ाना क्या होता है, कोई शहर वाला नहीं समझ सकता।”
जल जीवन मिशन बना मजाक
प्रधानमंत्री जल जीवन मिशन के तहत गांव में पाइपलाइन तो बिछाई गई लेकिन एक भी टोटी नहीं लग पाई। एकमात्र सरकारी हैंडपंप ही पानी का जरिया है, जहां सुबह-शाम लंबी कतारें, बूढ़े कंधे, और सूखी उम्मीदें दिखाई देती हैं।
सपनों में अंधेरा, शादियों में तिरस्कार
गांव के अरविंद पाल कहते हैं, “लोग यहां रिश्ता जोड़ने से भी डरते हैं। कहते हैं कि जहां बिजली नहीं वहां बेटी नहीं देंगे।”
जो भी शादी होती है, उसमें मिले टीवी, फ्रीज जैसे दहेज के सामान बिना बिजली के खराब होकर धूल खाते हैं।
बुनियादी सुविधाएं नदारद
- नाली महीनों से साफ नहीं हुई
- सड़कें अभी भी कच्ची हैं
- गांव में स्कूल नहीं है
- तहसील दिवस से लेकर मुख्यमंत्री तक शिकायतें की गईं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं।
सोलर से जुगाड़ की रोशनी
गांव की कुछ गिनी-चुनी झोपड़ियों में सोलर पैनल लगे हैं, जिनसे थोड़ी बहुत रोशनी हो जाती है। लेकिन ये भी हर परिवार की पहुंच से बाहर हैं।
गढ़रियनपुरवा पूछ रहा है सवाल
- क्या गढ़रियनपुरवा भारत का हिस्सा नहीं है?
- क्या यहां के बच्चे सिर्फ सरकारी आंकड़ों में गिने जाते हैं?
- क्या कभी यहां रोशनी, शिक्षा, और सम्मान आएगा?
गांव के लोग अब सिस्टम से नहीं, किस्मत से सवाल कर रहे हैं। और ये सवाल हर उस आवाज का हिस्सा हैं, जो अंधेरे में गुम हो जाती है।
