
हिंदू धर्म में साल भर में कुल 24 एकादशी तिथियाँ होती हैं, यानी हर महीने दो—एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। मान्यता है कि भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, कार्तिक मास, और एकादशी का व्रत अत्यंत प्रिय हैं। जो भी श्रद्धालु तुलसी दल अर्पित करता है, कार्तिक मास में भगवान विष्णु की भक्ति करता है और नियमपूर्वक एकादशी व्रत करता है, उसकी सभी कामनाएँ पूरी होती हैं और अंततः उसे विष्णु धाम की प्राप्ति होती है।
अब प्रश्न उठता है—एकादशी माता कौन हैं? उनकी उत्पत्ति कैसे हुई?
इसका विस्तृत वर्णन स्कंद पुराण में मिलता है। इस ग्रंथ में सभी एकादशियों का महात्म्य बताया गया है और एकादशी माता की उत्पत्ति की कथा भी।
एकादशी माता की उत्पत्ति – स्कंद पुराण से कथा
एक समय की बात है, जब मुर नामक एक भयंकर दैत्य ने अपनी शक्ति से समस्त देवताओं को पराजित कर स्वर्ग से खदेड़ दिया। भयभीत होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुँचे। इंद्र ने निवेदन किया—”भगवन! हम सब आपकी शरण में आए हैं। मुर नाम का दैत्य अत्यंत उग्र और शक्तिशाली है, उसने हम सभी को स्वर्गलोक से निकाल दिया है।”
भगवान विष्णु ने जानना चाहा कि यह मुर कौन है और कहाँ रहता है। तब इंद्र ने बताया कि ब्रह्माजी की वंश परंपरा में उत्पन्न तालजंघ नामक असुर का पुत्र मुर चन्द्रावती नगरी में रहता है और वह अत्यंत बलशाली है। उसने न सिर्फ इंद्र, बल्कि अग्नि, वायु, सूर्य, चंद्रमा और वरुण तक को पराजित कर दिया है।
यह सुनकर भगवान विष्णु क्रोधित हो उठे और देवताओं के साथ उस दैत्य से युद्ध करने चन्द्रावती नगरी पहुँचे। विष्णुजी ने अपने दिव्य अस्त्रों से राक्षसों का संहार प्रारंभ कर दिया और असंख्य दानवों को मार गिराया। इसके पश्चात भगवान बदरिकाश्रम चले गए और वहाँ स्थित सिंहावती नामक एक विशाल गुफा में विश्राम करने लगे। यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका केवल एक ही द्वार था।
उधर मुर राक्षस भी भगवान विष्णु का पीछा करते हुए उसी गुफा में पहुँच गया। जब उसने विष्णुजी को सोते देखा, तो उन्हें मारने का अवसर जानकर वार करने ही वाला था कि उसी क्षण भगवान विष्णु के शरीर से एक दिव्य तेजस्वी कन्या प्रकट हुई। वह रूप, बल, और अस्त्र विद्या में अद्वितीय थी।
उस कन्या ने मुर को ललकारा और भयंकर युद्ध हुआ। वह कन्या युद्धकला में इतनी निपुण थी कि उसकी हुंकार से ही मुर राख बन गया। जब भगवान विष्णु की नींद खुली, तो उन्होंने देखा कि मुर मारा हुआ पड़ा है। उन्होंने पूछा—”यह किसने मारा?”
कन्या ने उत्तर दिया—”भगवन, यह कार्य मैंने आपके कृपा-प्रसाद से किया है।”
विष्णुजी अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले—”कल्याणी! तुमने देवताओं और मुनियों को आनंदित किया है, इसलिए जो भी वर चाहो, मांग लो।”
तब उस कन्या ने कहा—”यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे यह वर दें कि मैं सभी व्रतों में श्रेष्ठ मानी जाऊँ, सारे पापों का नाश करने वाली रहूँ, और जो भी व्यक्ति श्रद्धा से मेरे दिन उपवास करे, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति हो।”
भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर कहा—”तथास्तु!” और उस दिन से वह कन्या एकादशी माता के रूप में प्रतिष्ठित हुईं।
