
लखनऊ/नई दिल्ली:भाजपा ने देश के 22 राज्यों में अपने नए प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा कर दी है, लेकिन अब भी देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में संगठन के शीर्ष चेहरे को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो सकी है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, यूपी अध्यक्ष को लेकर निर्णय में और देरी हो सकती है क्योंकि अभी भी किसी एक नाम पर नेतृत्व में सहमति नहीं बन पाई है।
पीडीए बनाम भाजपा: सामाजिक समीकरण साधने की कवायद
यूपी में भाजपा की रणनीति सिर्फ अध्यक्ष चयन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाजवादी पार्टी (सपा) के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण की काट खोजने की भी कोशिश है। पार्टी ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाना चाहती है जो न सिर्फ संगठन को मज़बूत करे, बल्कि सपा के सामाजिक गठजोड़ को भी चुनौती दे सके।
इसके साथ ही ब्राह्मण समाज की नाराजगी को लेकर पार्टी अंदरखाने सतर्क है। इटावा कांड जैसे मुद्दों से आहत माने जा रहे इस वर्ग को साधना भाजपा की प्राथमिकता में है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही होगा फैसला
भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष का फैसला अब संभवतः राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद ही लिया जाएगा।
भाजपा ने पूरे देश में 37 प्रदेश यूनिट्स बनाई हैं, जिनमें से अब तक 22 यूनिट्स में अध्यक्ष नियुक्त हो चुके हैं। नियमों के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए आधे से अधिक प्रदेशों में अध्यक्ष होना अनिवार्य है। अब यह कोरम पूरा हो चुका है और कभी भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा हो सकती है।
अध्यक्ष चयन के साथ योगी सरकार में बदलाव भी संभव
यदि भाजपा नेतृत्व यूपी अध्यक्ष के रूप में योगी सरकार में कार्यरत किसी मंत्री को चुनता है, तो इससे सरकार में कैबिनेट फेरबदल की स्थिति भी बन जाएगी।
केंद्रीय नेतृत्व यह चाहता है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता और संगठन दोनों में संतुलन साधा जाए।
इस लिहाज से भाजपा अध्यक्ष और योगी कैबिनेट – दोनों में बदलाव एक ही प्रक्रिया में हो सकते हैं।
स्वतंत्रदेव और धर्मपाल लोधी जैसे नाम चर्चा में
यूपी अध्यक्ष की दौड़ में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह तथा वरिष्ठ नेता धर्मपाल सिंह लोधी जैसे नाम चर्चा में हैं। हालांकि शीर्ष नेतृत्व अब भी पूरी सावधानी से निर्णय लेना चाहता है।
भाजपा की चुनाव प्रक्रिया है जटिल और समय लेने वाली
प्रदेश अध्यक्ष के चयन में देरी की एक वजह भाजपा की आंतरिक चुनाव प्रक्रिया भी है।
- भाजपा की चुनाव प्रणाली के अनुसार, हर विधानसभा क्षेत्र से एक प्रतिनिधि वोट करता है।
- यूपी में 403 विधानसभा सीटें हैं, यानी उतने प्रतिनिधि शामिल होंगे।
- इसके अलावा लगभग 20% सांसद और विधायक भी वोटिंग प्रक्रिया में भाग लेते हैं।
- हालांकि जिला अध्यक्ष चुनाव प्रक्रिया में शामिल रहते हैं, लेकिन उन्हें वोटिंग का अधिकार नहीं होता।
इस पूरी प्रक्रिया में वोटर लिस्ट तैयार करना, नामांकन लेना, नाम वापसी की तारीख तय करना और अंतिम घोषणा करना जरूरी होता है, जिसमें कम से कम चार दिन का समय लगता है।
