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सूर्य नमस्कार को बताया ‘हराम’, योग दिवस पर बोले मौलाना रजवी; योगी सरकार के मंत्री ने किया करारा पलटवार
बरेली | 22 जून 2025:
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर योग को लेकर एक बार फिर धर्म बनाम परंपरा की बहस छिड़ गई है। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने योग का समर्थन करते हुए सूर्य नमस्कार को इस्लाम में ‘हराम’ करार दिया। उन्होंने कहा कि सूर्य नमस्कार हिंदू धर्म की परंपरा है और इसमें सूरज की पूजा की जाती है, जो इस्लामिक आस्था के विरुद्ध है।
मौलाना रजवी का बयान
शनिवार को बरेली स्थित दरगाह आला हजरत में योग कार्यक्रम में भाग लेने के बाद मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा:
“हर औरत और आदमी को योग करना चाहिए। मस्जिदों और मदरसों में भी योग होना चाहिए, लेकिन सूर्य नमस्कार इस्लाम में मना है। सूरज को देखकर पूजा करना इस्लाम में जायज नहीं है। इसलिए हमने अपने अनुयायियों से इसे न करने को कहा है।”
मौलाना ने साफ किया कि उन्होंने योग का समर्थन किया है, लेकिन सूर्य नमस्कार को धार्मिक विरोध की दृष्टि से नकारा है। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर कुछ मदरसों ने योग दिवस मनाया, जबकि कई ने इसे “सनातन धर्म की पहचान” बताकर विरोध किया।
मंत्री जेपीएस राठौर का पलटवार
योगी सरकार में सहकारिता राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जेपीएस राठौर ने मौलाना के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी।
बरेली कॉलेज के योग कार्यक्रम के बाद उन्होंने कहा:
“मौलाना रजवी की यह सोच बेहद संकीर्ण है। जैसे सूर्य सत्य है, वैसे ही सूर्य नमस्कार भी सत्य है। योग किसी धर्म से जुड़ा नहीं है, यह भारत की सांस्कृतिक विरासत है, जिसे दुनिया ने अपनाया है।”
योगी आदित्यनाथ ने क्या कहा?
इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर परिसर में योग कार्यक्रम का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा:
“योग भारतीय मनीषा की अनुपम देन है। भारत ने योग को लोक कल्याण का माध्यम बनाकर विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। इसी कारण आज लगभग 190 देशों में भारतीय योग की विरासत के साथ लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।”
विवाद की जड़ क्या है?
- मौलाना रजवी योग के अभ्यास को तो उचित मानते हैं लेकिन सूर्य नमस्कार को ‘सूर्य पूजा’ से जोड़कर इस्लाम के विरुद्ध मानते हैं।
- वहीं, सरकार का कहना है कि सूर्य नमस्कार किसी पूजा का नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक और शारीरिक अनुशासन का हिस्सा है, जो पूरी दुनिया में स्वास्थ्य लाभ के लिए किया जा रहा है।
निष्कर्ष:
योग दिवस को लेकर धार्मिक असहमतियां पहले भी सामने आती रही हैं, लेकिन इस बार फिर से बयानबाजी तेज हो गई है। जहां एक ओर सरकार इसे भारतीय संस्कृति की वैश्विक स्वीकार्यता बता रही है, वहीं कुछ धर्मगुरु इसे धार्मिक पहचान से जोड़कर विरोध कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है—क्या योग को धर्म के चश्मे से देखा जाना उचित है?
