लखनऊ : दिल्ली विकास प्राधिकरण का बुलडोजर इस समय सुर्खियों में है। प्राधिकरण करीब 1300 साल अधिक पुराने श्री पीर रतन नाथ जी की मंदिर-दरगाह पर बुलडोजर चलने से चर्चा में है। आदि गुरु गोरखनाथ जी के परम शिष्य बाबा पीर रतननाथ जी के पौराणिक सनातनी मंदिर पर 29 नवम्बर को डीडीए व एमसीडी अधिकारियों द्वारा बुलडोज़र से कार्रवाई गई थी, इसपर विरोध जारी है। इसका असर लखनऊ में भी देखने को मिल रहा है।
लखनऊ और आसपास के जिलों से आए सैकड़ों महिला, पुरुष और बच्चों (अनुयाइयों) ने राम- नाम के जाप के साथ मंदिर दरगाह के समक्ष शांतिपूर्वक विरोध दर्ज कराया। कई बुजुर्ग महिलाएं और सेवक परिवार हाथ जोड़कर लगातार यही कह रहे थे “भगवान का घर टूटे, ये कैसे सहें?” मंदिर दरगाह प्रबंधन ने इस घटना को “सनातन भावनाओं पर चोट” बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को विस्तृत ज्ञापन जिलाधिकारी लखनऊ के माध्यम से भेजा। ज्ञापन का शीर्षक- “करूणामयी निवेदन”- ही अनुयायियों की पीड़ा का संकेत दे रहा था।
मामले में मंदिर प्रबंध समिति के पदाधिकारी मनीष साहनी ने कहा कि 1365 वर्षों की परंपरा काबुल से पेशावर और दिल्ली तक की यात्रा और अब बुलडोज़र की चोट ज्ञापन का हवाला देते हुए साहनी ने कहा कि झंडेवालान का यह स्थल कोई साधारण मंदिर नहीं, बल्कि लगभग 1365 वर्षों की अखंड नाथ परंपरा का जीवित केंद्र है।
साहनी ने कहा कि बाबा पीर रतननाथ जी- जो नेपाल के दांग क्षेत्र से लेकर खुरासान और काबुल तक सनातन धर्म का ध्वज ऊँचा रखने वाले महान संत माने जाते हैं- ने 700 वर्षों तक गुरु गोरक्षनाथ जी के आदेशानुसार सनातन धर्म की रक्षा की। परंपरा में यह तक वर्णित है कि उन्होंने मोहम्मद साहब से शास्त्रार्थ किया था, यह हम यूं ही नहीं कह रहे, आप लोग स्वयं पुष्टि कर सकते हैं, कुरान शरीफ में भी इसका जिक्र है।
उन्होंने आगे बताया कि “शिवपुरी प्रस्थान (मृत्यु) से पहले बाबा ने अपनी संपूर्ण गद्दी एक अविवाहित ब्राह्मण को दान में दे दी थी। नेपाल सीमा स्थित पाटेश्वरी देवी शक्तिपीठ (पाटनदेवी) तथा गुरु गोरखनाथ धाम, गोरखपुर में आज भी उनकी उपस्थिति प्रतिमा स्वरूप विद्यमान है। वर्तमान में परंपरा के 31वें ईश्वरीय स्वरूप महाराज जी गद्दी पर विराजमान हैं, जिनके लाखों अनुयायी विश्वभर में फैले हुए हैं। हमें सरकार के साथ साथ अदालत पर पूरा भरोसा है। हमारी कोई भी मांग कानून के विरुद्ध नहीं है। कोई हमारा साथ दे या ना दे अदालत जरूर न्याय करेगी।।
तालिबान शासन में भी न छोड़ा काबुल का मंदिर, लेकिन दिल्ली में हुआ ध्वस्तीकरण-
मोदी, योगी व शाह को भेजे ज्ञापनों में एक भावुक प्रसंग भी दर्ज है , जिसमें कहा गया है कि तालिबान शासन आने पर काबुल स्थित इस गुरु-स्थान के पुजारी राजेश तिवारी को भारत बुलाया गया, पर उन्होंने कहा- मर जाऊँगा, पर इस स्थान को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा। लखनऊ के कार्यक्रम में कई अनुयायियों ने यह उदाहरण देते हुए कहा कि जब अफगानिस्तान में तालिबान और पेशावर (पाकिस्तान) में कोई हमारे मंदिर नहीं हटा पाया, तो दिल्ली में हमारा मंदिर क्यों तोड़ा गया?
29 नवम्बर की कार्रवाई का विवरण
बहराइच से आए मंदिर दरगाह के सेवक मनीष मल्होत्रा ने बताया कि 29-11-2025 को डीडीए और एमसीडी के अधिकारी भारी पुलिस बल और एसडीएम के साथ अचानक दिल्ली के झंडेवालान स्थित मंदिर परिसर पहुँचे। आसपास के कुछ मकान गिराने की बात कहकर उन्होंने- मंदिर की बाउंड्रीवाल, तुलसीवाटिका, पानी की टंकियाँ, सीवर लाइन, अस्थायी लंगर हॉल, बिजली पैनल रूम, जनरेटर रूम, लोहे के तमाम गेट सहित काफी कुछ ध्वस्त कर दिया। लगभग 15 घंटे तक भगवान का भोग, आरतियाँ और सभी नित्यकर्म बाधित रहे। ज्ञापन में मंदिर प्रबंधन ने दावा किया है कि 1948 से 3803 वर्गगज भूमि पर मंदिर स्थित है और 1973 से वैध लीज मौजूद है।
