केंद्र सरकार ने ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बदलाव करते हुए लोकसभा में ‘जी राम जी’ बिल पेश किया, जिसका विपक्ष ने विरोध किया। यह बिल मनरेगा की जगह लेगा, जिसमें ग्रामीण परिवारों को 125 दिन का रोजगार मिलेगा, लेकिन राज्यों को खर्च का 10-40% वहन करना होगा। फसल के मौसम में काम नहीं मिलेगा, जिससे कृषि कार्यों में मजदूरों की कमी न हो। विपक्ष का कहना है कि इससे राज्यों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा और गरीबों को नुकसान होगा।
पटना। केंद्र सरकार ने ग्रामीण रोजगार व्यवस्था को नए सांचे में ढालने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। लोकसभा में मंगलवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने VB–जी राम जी बिल, 2025 पेश किया, जिसके बाद सदन में जोरदार हंगामा देखने को मिला। यह बिल पास होने की स्थिति में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) की जगह लेगा और इसका नया नाम होगा, विकसित भारत, गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण), यानी ‘जी राम जी’।
सरकार का दावा है कि यह बिल ‘विकसित भारत 2047’ के राष्ट्रीय विजन के अनुरूप ग्रामीण रोजगार और आजीविका को मजबूत करेगा।प्रस्तावित प्रावधानों के अनुसार, ग्रामीण परिवारों को अब सालाना 100 की जगह 125 दिन रोजगार देने की बात कही गई है। हालांकि, इसके साथ ही खर्च की जिम्मेदारी में बड़ा बदलाव किया गया है।
अब इस योजना में राज्यों को 10 से 40 प्रतिशत तक खर्च वहन करना होगा, जबकि अभी तक इसका पूरा वित्तीय बोझ केंद्र सरकार उठाती थी।नए बिल में यह भी प्रस्ताव है कि बुवाई और कटाई के मौसम के करीब 60 दिनों में इस योजना के तहत काम नहीं दिया जाएगा, ताकि कृषि कार्यों के दौरान मजदूरों की कमी न हो।
सरकार का तर्क है कि इससे खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों को संतुलित तरीके से मजबूती मिलेगी। विपक्ष ने इस बिल को लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि यह कानून मनरेगा को केंद्र के नियंत्रण का औजार बना देगा। बजट और नियम केंद्र तय करेगा, जबकि राज्यों पर अतिरिक्त बोझ डाला जाएगा। राहुल ने कहा कि मोदी जी को दो चीज़ों से पक्की नफ़रत है – महात्मा गांधी के विचारों से और गरीबों के अधिकारों से।मनरेगा, महात्मा गांधी के ग्राम-स्वराज के सपने का जीवंत रूप है, करोड़ों ग्रामीणों की ज़िंदगी का सहारा है, जो कोविड काल में उनका आर्थिक सुरक्षा कवच भी साबित हुआ।मगर, प्रधानमंत्री मोदी को यह योजना हमेशा खटकती रही, और पिछले दस सालों से इसे कमजोर करने की कोशिश करते रहे हैं। आज वो मनरेगा का नामो-निशान मिटाने पर आमादा है।
उनका आरोप है कि फसल के मौसम में रोजगार पर रोक से गरीब मजदूरों को महीनों तक काम नहीं मिलेगा। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सरकार पर योजनाओं के नाम बदलने की ‘सनक’ का आरोप लगाया, वहीं समाजवादी पार्टी के सांसद अखिलेश यादव ने कहा कि नाम बदलने से जमीनी हकीकत नहीं बदलेगी, बल्कि राज्यों के सामने आर्थिक संकट खड़ा होगा।
बिहार में भी इस बिल को लेकर सियासत गर्म है। राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने कहा कि केंद्र सरकार का कोई नया विजन नहीं है और वह यूपीए काल की योजनाओं का नाम बदलकर अपनी उपलब्धि बता रही है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि महात्मा गांधी केवल एक नाम नहीं, बल्कि प्रेरणा हैं। बापू रामराज की स्थापना की बात कहते थे। पता नहीं ‘विकसित भारत – जी राम जी’ के नाम पर विपक्ष क्यों भड़क गया।
उनका संकल्प था कि सबसे अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का कल्याण हो। उन्होंने दावा किया कि यह बिल गरीबों के सम्मान और गांधीजी के सपनों को साकार करने की दिशा में बड़ा कदम है।
अब सबकी नजरें संसद की अगली बहस और इस बिल के भविष्य पर टिकी हैं।
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