
पुरी (उड़ीसा), 27 जून 2025 – आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का भव्य शुभारंभ हुआ। श्रीमंदिर से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाओं को परंपरागत ‘पहांडी’ विधि से रथों पर विराजमान किया गया। पूरा पुरी नगरी “जय जगन्नाथ!” के घोष से गूंज उठा। लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में यह यात्रा गुंडिचा मंदिर की ओर रवाना हुई — जहां भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर नौ दिनों तक विश्राम करेंगे।
लेकिन सवाल उठता है: देवी गुंडिचा मौसी कैसे बनीं?
इस कथा की जड़ें एक प्राचीन काल में राजा इंद्रद्युम्न और रानी गुंडिचा के समय से जुड़ी हैं। उन्होंने भगवान नीलमाधव के लिए भव्य मंदिर निर्माण कराया था, परंतु देवप्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए योग्य ब्राह्मण की आवश्यकता थी। देवर्षि नारद के मार्गदर्शन में राजा ब्रह्मलोक ब्रह्मदेव को आमंत्रित करने गए। मगर ब्रह्मलोक से लौटने पर पता चला कि धरती पर कई युग बीत चुके थे, राज्य, परिवार सब कुछ बदल गया था।
राजा के लौटने तक मंदिर रेत में दब चुका था। नए राजा गालु माधव को यह मानने में कठिनाई हुई कि इंद्रद्युम्न ही मंदिर निर्माता हैं। संत के वेश में आए हनुमान जी ने राजा की सच्चाई प्रमाणित करवाई। इसी दौरान समाधि में लीन रानी गुंडिचा को अपने पति की वापसी का आभास हुआ और वे पुनः प्रकट हुईं।
जब दोनों का पुनर्मिलन हुआ, तो श्रीमंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा ब्रह्मा जी द्वारा सम्पन्न कराई गई। भगवान जगन्नाथ ने राजा से वरदान मांगने को कहा। राजा ने सबके कल्याण की कामनाएँ मांगीं। अंत में भगवान ने रानी गुंडिचा की ओर देखकर कहा:
“आपने मेरी प्रतीक्षा मां की तरह की है। आज से आप मेरी ‘मौसी’ हैं। मैं हर वर्ष आपको मिलने आऊंगा। जिस स्थान पर आपने तप किया, वह अब ‘गुंडिचा मंदिर’ कहलाएगा।”
यही है रथ यात्रा की आत्मा – मौसी के घर भगवान का वार्षिक आगमन।
पुरी की रथ यात्रा न केवल श्रद्धा का पर्व है, बल्कि एक गहरा पौराणिक-सांस्कृतिक संवाद है — जिसमें प्रेम, प्रतीक्षा, त्याग और पुनर्मिलन की भावनाएं जीवित होती हैं।
विशेष तथ्य:
- रथ यात्रा में तीन रथ होते हैं: भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष, बलभद्र का तालध्वज, और सुभद्रा का दर्पदलन।
- गुंडिचा मंदिर में भगवान का नौ दिनों तक निवास रथ यात्रा का प्रमुख आकर्षण होता है।
- गुंडिचा मंदिर को ‘मौसीबाड़ी’ यानी मौसी का घर भी कहा जाता है।
