
उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में दो नन्हे हाथी—‘राजा’ और ‘रुस्तम’—आजकल चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। इन दोनों ने इंसानी ममता और अपनापन ऐसा पाया कि अब जंगल की दुनिया और हथिनी मां की ममता भी उन्हें वापस खींच नहीं पा रही है। वन विभाग इन्हें वापस जंगल में बसाने के छह प्रयास कर चुका है, लेकिन हर बार ये नन्हे जीव इंसानी माहौल में लौट आते हैं।
ऐसे हुई दोनों की एंट्री वन विभाग की देखरेख में
इस साल जनवरी में हल्द्वानी की पीपल पड़ाव रेंज से ‘राजा’ को घायल अवस्था में रेस्क्यू किया गया था। वहीं अप्रैल में बन्नाखेड़ा गांव से ‘रुस्तम’ को भी इसी तरह बचाया गया। दोनों की उम्र करीब 9-10 महीने है और अब ये संजय वन में डॉक्टरों की निगरानी में पल-बढ़ रहे हैं। उन्हें दूध, दलिया और केले जैसी चीजें दी जा रही हैं। सुबह और शाम दोनों वक्त भरपेट भोजन मिलता है।
छह बार जंगल भेजने की कोशिश, हर बार नाकाम
वन विभाग की एसडीओ शशिदेव के मुताबिक, दोनों को जंगल में हथिनी और झुंड में शामिल करने की कोशिशें असफल रही हैं। थोड़ी देर साथ रहने के बाद दोनों वापस मानवों की ओर लौट आते हैं। अब इनका इंसानों से इतना लगाव हो गया है कि वे जंगल की दुनिया को अपनाने को तैयार ही नहीं हैं।
इंसानों से लगाव इतना गहरा…
डिप्टी रेंजर विरेन्द्र परिहार बताते हैं कि दोनों अब वनकर्मियों से इतने घुल-मिल गए हैं कि भूख लगने पर चिंघाड़ कर अपनी बात कहने लगे हैं। सुबह 7 बजे और फिर शाम को दोनों को 10 किलो दूध, 10 किलो दलिया और दो दर्जन केले दिए जाते हैं।
अब आगे क्या?
तराई केंद्रीय वन प्रभाग के डीएफओ यूसी तिवारी ने कहा कि दोनों हाथी अब बड़े हो रहे हैं, और लंबे समय तक उन्हें वन रेंज में रखना सुरक्षित नहीं है। जंगल में छोड़ना इनके लिए जोखिम भरा हो सकता है। इसलिए इस मामले में उत्तराखंड के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक से दिशा-निर्देश मांगे गए हैं।
क्यों नहीं अपनाया हथिनी मां ने?
वन्यजीव विशेषज्ञ बताते हैं कि हाथी बहुत सामाजिक जीव होते हैं। आमतौर पर, मां का व्यवहार बदलने पर बच्चे झुंड से अलग हो जाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद वे फिर से जुड़ जाते हैं। ऐसी भी हथिनियाँ होती हैं जो मां न होते हुए भी अनाथ बच्चों को अपना लेती हैं। लेकिन राजा और रुस्तम जैसे मामले दुर्लभ हैं जहां दोनों झुंड से दोबारा जुड़ने को तैयार नहीं।
