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पुरी (ओडिशा)। हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथ यात्रा धूमधाम से निकाली जाती है। इस वर्ष रथ यात्रा 27 जून 2025, शुक्रवार से आरंभ हो रही है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेंगे और पुण्य लाभ के लिए रथ खींचेंगे।
‘छेरा पहरा’ – रथ यात्रा की पवित्र रस्म
रथ यात्रा से जुड़ी कई सदियों पुरानी परंपराएं हैं, जिनमें ‘छेरा पहरा’ नामक रस्म विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस परंपरा के तहत भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन के रथों के मार्ग की सफाई सोने की झाड़ू से की जाती है। यह कार्य पुरी के गजपति महाराज (स्थानीय राजा के वंशज) स्वयं करते हैं।
सोने की झाड़ू का महत्व क्या है?
पौराणिक मान्यता है कि सोना एक पवित्र धातु है और देवी-देवताओं की सेवा में इसका विशेष स्थान है। रथ यात्रा शुरू होने से पहले, रथों के मार्ग को सोने की झाड़ू से बुहारा जाता है, साथ ही वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इससे यह दर्शाया जाता है कि भगवान के स्वागत में कोई भी कमी नहीं रहनी चाहिए। यह परंपरा न केवल आध्यात्मिक पवित्रता, बल्कि विनम्रता और भक्ति का प्रतीक भी है।
इस प्रक्रिया को यह भी माना जाता है कि राजा स्वयं भगवान के सेवक हैं, और यह कार्य कर वे नम्रता का प्रदर्शन करते हैं। मान्यता है कि इस सेवा से सौभाग्य और पुण्य की प्राप्ति होती है, और पापों का नाश होता है।
रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी सुभद्रा ने पुरी नगर देखने की इच्छा प्रकट की थी। तब भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने उन्हें रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया और गुंडिचा मंदिर (जो भगवान जगन्नाथ की मौसी का मंदिर माना जाता है) में कुछ दिनों तक विश्राम किया। तभी से यह परंपरा हर वर्ष निभाई जाती है। तीनों रथ गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं और वहां सात दिन रुकने के बाद फिर वापस जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं।
श्रद्धालुओं की उमड़ती भीड़ और आस्था
हर साल इस पावन अवसर पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं। रथ को खींचना बड़ा पुण्य कर्म माना जाता है। मान्यता है कि रथ खींचने से जीवन के सभी पाप कट जाते हैं और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
